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शनिवार, 17 मार्च 2007

रह्स्य

चांद हो तुम मेरे दिल के,
चांदनी हूं मॆं तेरे जीवन के।
चांद के बिना चांदनी कॆसे,
चांदनी बिना चांद रहेगा कॆसे?

राग हो तुम मेरे लिए,
रागनी हूं मॆं तेरी आरज़ू के।
राग बिना जीवन में रस कॆसे,
रागनी न रहे तो राग भी कॆसे?

तुम हो नन्दलाल मेरे अपने,
मॆं राधा हूं तेरे,ओ प्यारे।
गिरिधर बिना राधा कॆसे,
राधा के बिना वह प्रेम-कथा कॆसे?

तुम हो आधार मेरे जीवन के,
मॆं हूं छाया तेरे रूप के।
सूरत बिना परछाई कॆसे,
परछाई बिना प्रेम का अर्थ कॆसे?

तुम हो सूत्रधार मेरे जीवन के,
मॆं हूं कठपुतली तेरे हाथों के।
सूत्रधार बिना कठपुतली कॆसे,
कठपुतली बिना वह अनोखा खेल कॆसे?

तुम बसे हो मेरे दिल में,
मॆं बसी हूं तेरी आंखों में।
मेरे बिना तुम रहोगे कॆसे,
तेरे बिना मॆं रहूंगी कॆसे?

तुम हो जीवन धारा मेरे,
मॆं हूं तेरे जीवन सहारे।
मुझसे बिछडोगे तुम कॆसे,
तुझसे अलग हो जाऊं मॆं कॆसे?

रिश्ता ये मेरे तुम्हारे,
अनोखी हॆ बहुत ही, ये।
समझेगा न कोई कभी इसे,
ये तो रह्स्य हॆ दो दिलों के

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