तीर लगी दिल पे मेरी,
दिल को छीर गई,
हाय, दर्द से मैं कराह उठी!
ये तो बताओ, क्यूं इतनी बेदर्दी?
क्या याद नहीं, तुम्हे मेरी?
क्या कभी याद इस विरहन की न आती,
जिसने तुम्हे जिंदगी बनाई अपनी।
ओ प्रीतम, ये रूखापन छोड़ो,
आकर मुझे गले लगा लो,
ग़म से छुटकारा दिला दो,
इस दीवानी को अपनाओ।
कुछ और नही चाहती दीवानी ये,
बस तेरे चरणों में स्थान दो इसे,
ताकि ये जिंदगी अपनी बिता सके,
चैन, आराम, और खुशी से!
रात-भर रोई थी, तेरी याद में
मेघ काले छाए थे, आंखों के सामने,
शीतल करने के वास्ते, आओ, मेरे प्यारे,
शम्मा जलने आओ, मेरे परवाने!
5 टिप्पणियां:
बेहतर है आमंत्रण का यह स्वर
shukriya verma ji
IN KAVITAON KO EDIT KARKE PUNAHPRAKASHIT KARIYE.. MOOL KE SATH.. KUCCH NAYA ANUBHAV HOGA..AAPKE PAS BAHUT UTTAM BHAV AUR VICHAR HAIN ANUBHOOTI BHI GAHRI HAI..SHILP KI SMASYA HAI THODI SI..
aapka bahut bahut shukriya, shyaamji. asal mein yeh hua ki type karte waqt maine in aksharon par dhyaan nahi di. ab maine edit karke punahprakashit kar diya hai.
bahut shukriya.
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