चारों ओर अपनी स्निग्ध किरणे फैलाया।
मौसम हो गया बहुत सुहाना।
गुनगुनाने लगा एक नन्हा भौरा,
मस्ती में झूमके, प्यार का तराना।
पृथ्वी पर सुख ही सुख छा गया था,
पर, अचानक वहाँ आ टपका,
क्रूर, कुरूप, बादल एक काला।
वह तो था बादलों का नेता,
अपने दल को भी साथ ले आया।
पल भर में सब विकृत हो गया,
नष्ट हो गया पृथ्वी का यह रूप न्यारा।
चारों ओर तो छा गया,
तमतमाता अँधेरा ही अँधेरा।
फिर क्रोध से बरस पड़ा,
वह तूफानी मेघ बड़ा।
देखते ही मेरा दिल भर आया,
पूछने लगी, "ऐसा क्यूँ हुआ?
बादल ने ऐसा क्यूँ किया?
सुख में पली पृथ्वी को क्यूँ तडपाया?"
पर, कुछ ही देर बाद वह चला गया।
फिर से दिवाकर उभर आया,
इन्द्रधनुष को भी संग ले आया।
तब मुझे ऐसा महसूस हुआ,
जैसे, आता तूफ़ान के बाद हमेशा,
इन्द्रधनुष, भोला-प्यारा,सुनहरा,
उसी तरह, हमारे साथ भी होता।
ग़म के कटोर बादलों के बाद,
आता सुख का निखरा रूप हमेशा।
कभी-कभी किसी के मिलाबं होता,
तो कभी उसी से बिछड्ना भी पड़ता।
विरह व्यथा में हमें जलना पड़ता,
पर, ये तो पल भर के लिए होता।
बाद में हमेशा सुख नामक इन्ध्राध्नुष आता।
आखिर यही तो है रंग जीवन का,
इसीलिए ग़म उठाना मुझे बहुत भाता.
6 टिप्पणियां:
खूबसूरत है कविता, जिन दिनों लिखी थी उनका कुछ इशारा भी कर दें तो और बेहतर होगा. जैसे ये कविता इस कक्षा या फिर साल में लिखी थी
badi pyaari kavitaa likhi hai bhai.....swagat hai aapkaa blog ki duniya me......kuch isee tarah se hum bhi kavitaaye likhte aaye hai school k dino se hee....
bahut uttam rachna...........
Achchha lagaa apka yah prayaas...koshish jaaree rakhiye.shubhkamnayen.
HemantKumar
aap sab ka bahut bahut dhanyavaad.
shukriya, kishore chaudharyji, agar mujhe yaad hai, to main zaroor taarik bhi likhoongi.
shukriya Sangeeta Puri ji!
main bahut khush hoon, jab se mujhe maaloom hua ki logon ko meri kavitaaein pasand aa rahi hain.
bahut bahut dhanyavaad.
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