बरसात आई री सखी,
धरती से मीठी महक उठी |
कलियाँ ऒस से भीगी, मुस्कराने लगी,
सडक के सारे नालिया भर गयी |
बून्दे बिजलियो के कमभों मे जा रुकी,
ज़मीन ये बहुत ही शीतल हुई.
चारों तरफ़ अन्धियारा फैल गई,
पंछियाँ सब घोंसलों मे छिप गई |
खेतों मे अनाज के पौधे चमक उठी,
कहीं से एक गीत गूँज उठी |
घरो के छतो पर बारिश हुई,
खिडकियों पर झटके से गिर आई,
चारो ओर हो गयी हरियाली ही हरियाली.
ये सब देखकर मैं पुलकित हो उठी;
अरी सखी! सुन्दर बरसात आई!
रिम-झिम, रिम-झिम बारिश आई,
सबके मन को शीतल कर गई,
ये बरसात है बहुत ही प्यारी!
- "अपराजिता"
धरती से मीठी महक उठी |
पेड़ों औ ' वृक्षों से धूल धुली,
पत्तिया बरसात मे चमक उठीं |कलियाँ ऒस से भीगी, मुस्कराने लगी,
सडक के सारे नालिया भर गयी |
बून्दे बिजलियो के कमभों मे जा रुकी,
ज़मीन ये बहुत ही शीतल हुई.
चारों तरफ़ अन्धियारा फैल गई,
पंछियाँ सब घोंसलों मे छिप गई |
खेतों मे अनाज के पौधे चमक उठी,
कहीं से एक गीत गूँज उठी |
घरो के छतो पर बारिश हुई,
खिडकियों पर झटके से गिर आई,
चारो ओर हो गयी हरियाली ही हरियाली.
ये सब देखकर मैं पुलकित हो उठी;
अरी सखी! सुन्दर बरसात आई!
रिम-झिम, रिम-झिम बारिश आई,
सबके मन को शीतल कर गई,
ये बरसात है बहुत ही प्यारी!
- "अपराजिता"
2 टिप्पणियां:
Beautiful! What I like about this poem is that it is just a pure observation of all the transformations that the rain brings, and painted the scene vividly in front of my eyes as i read the poem!
hey archikins..your comment is encouraging..thanx
एक टिप्पणी भेजें