Welcome to my blog :)

rss

मंगलवार, 13 मार्च 2007

अगर मॆं....होती

अगर मॆं फूल होती मधुवन की,
तो केशव की मुरली रोज़ सुनती.
चुन लेती मुझे राधा रानी,
मॆं बन जाती हार गिरिधर की.
होती अगर मॆं पेड कदली की,
तो मद-मस्त पवन मुझे छू लेती,
खुशबू माधव के प्यार की देती.
गोपिका मॆं कृष्ण की अगर होती,
तो रोज़ मॆं उसके साथ रास रचाती.
होती अगर मॆं धारा यमुना की,
तो कन्हॆया के पद-धूली से धन्य हो जाती.
अगर मॆं चिडिया होती वृन्दावन की,
तो रोज़ देखती गिरिधर की छवि न्यारी.
होती अगर मॆं गऊ नन्दलाल की,
तो रोज़ मॆं सुनती कान्हा की बोली प्यारी.
पत्ती होती अगर मॆं वृन्दावन की,
मॆं सदा देखती शरारत वासुदेव की.
माखन होती अगर मॆं मथुरा की,
तो वह सॊभाग्य मुझे मिल जाती,
कि मॆं भोज हूं देवकी नन्दन की.
पवन होती अगर मॆं मधुपुर की,
तो,माखन-चोर के लटों से खेलती,
उस नटखट के कपोलों को छू लेती.
कंकड होती अगर मॆं नन्द गांव की,
तो नटखट के पद-चिन्ह मुझपर पडती.
धन्य हॆ ये चीज़ सारी की सारी,
चूंकि, इन्हें यह सॊभाग्य मिली,
जो दुर्लभ हॆ मिलना ऋषियों को भी.

कोई टिप्पणी नहीं: