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रविवार, 9 अगस्त 2009

दुनिया पर इल्ज़ाम

मरे हैं अब तक कितने फूल ये,
मिलाया है कौन उन्हें धूल में?

दुनिया! तूने ही खिलने लायक फूल इन्हे,
दुखाया है अपने क्रूर अनय्यायों से।
जलाया है उन कलियों को अगन से,
जल चुके हैं कई विरह की अग्नि में।

मरे हैं अब तक कितने फूल ये,
मिलाया है कौन उन्हें धूल में?

जब खिलने लगे, तूने उन्हें रोका,
लातों से तूने ही इन्हे मारा।
इनके दलों को अन्याय दे दिया,
जब इन्होने न्याय तुमसे माँगा।

मरे हैं अब तक कितने फूल ये,
मिलाया है कौन उन्हें धूल में?

इन्हे प्रेम के बदले में नफरत दिया,
तेरे साथ इंसान भी बदल गया।
पर, बेचारे! इनसे ये नही हुआ,
पर, इनके बरने से तुम्हे क्या मिला?


मरे हैं अब तक कितने फूल ये,
मिलाया है कौन उन्हें धूल में?

इन बिचारों के दिल में विरह जागा,
ओ दुनिया, तेरे प्रति गुस्सा जागा।
क्यूं अपने सर पर पाप उठाया,
की तूने ही इन बिचारों को मारा।

मरे हैं अब तक कितने फूल ये,
मिलाया है कौन उन्हें धूल में?

पाप उठाओ तेरे सर पर,
तुम्ही ने इन्हे मारा पत्थर।
आज लगाती हूँ इल्ज़ाम तुम पर,
तुम्ही ने मारा इन्हे, बेदर्द.



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