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रविवार, 9 अगस्त 2009

दया करो करूणानिधि!

किसके वास्ते बनाया है गिरिधारी,
तूने, ये दुनिया उतनी भारी।
कभी न देखा इसमे खुशी,
है सिर्फ़ गम और ग्रम ही।

किसी ने न समझा इस दिल को,
प्रीतम ने तोड़ दिया प्रेम को,
हँसते हैं तोडके दिल को,
आख़िर है दिल शीशे जैसे ही तो।

क्यूँ बनाया तूने नीयत ऐसी,
दो प्रेमियों को मिलने न दिया कभी।
टुकाराया है, बस दुनिया तेरी,
हाय तदापके मरने लगी यह बिचारी।

दया नही तेरे दिल में क्या?
इतने क्रूर बने हो कब से, हाँ,
अपनी भक्तों पर करो दया,
अपनाओ उसके प्रेम का दीया!

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