आजाद पंछी हूँ मैं इस बड़े बाग़ की,
विचरण करती हूँ इस दुनिया में अकेली।
कोई भी न है अपनी सखी-सहेली,
करती वहीं हूँ जो मैं ठीक समझती।
अजीब रीत है दुनिया-वालों की,
करते हैं बात सिर्फ़ दूसरों की ही ।
अपने बारे में वे सोचते ही नहीं,
हमेशा बुराई सोचते हैं अपने पड़ोसियों की।
ऐसे में, मैं क्यूं परवाह करूँ उनकी,
क्यूं कुर्बान कर दूं अपनी नेकी?
अपनापन का जब मतलब ही नहीं,
तो मैं क्यूं 'बंदी' बनके रहूँ इस बंधन की?
मुक्ति के राह पर मैं चलूंगी,
परवाह करूंगी सिर्फ अपने गिरिधारी की।
मैं हमेशा बनकर रहूंगी आजाद पक्षी,
रोक न सकेगा मेरी उड़ान को कोई भी।
मैं बनके रहूंगी पंछी मद-मस्त सी,
एक दिन ज़रूर इस दुनिया को जीत लूंगी ।
विचरण करती हूँ इस दुनिया में अकेली।
कोई भी न है अपनी सखी-सहेली,
फिर भी हूँ मैं मद-मस्ती से भरी।
परवाह नहीं मुझे ज़रा भी किसीकी,करती वहीं हूँ जो मैं ठीक समझती।
अजीब रीत है दुनिया-वालों की,
करते हैं बात सिर्फ़ दूसरों की ही ।
अपने बारे में वे सोचते ही नहीं,
हमेशा बुराई सोचते हैं अपने पड़ोसियों की।
ऐसे में, मैं क्यूं परवाह करूँ उनकी,
क्यूं कुर्बान कर दूं अपनी नेकी?
अपनापन का जब मतलब ही नहीं,
तो मैं क्यूं 'बंदी' बनके रहूँ इस बंधन की?
मुक्ति के राह पर मैं चलूंगी,
परवाह करूंगी सिर्फ अपने गिरिधारी की।
मैं हमेशा बनकर रहूंगी आजाद पक्षी,
रोक न सकेगा मेरी उड़ान को कोई भी।
मैं बनके रहूंगी पंछी मद-मस्त सी,
एक दिन ज़रूर इस दुनिया को जीत लूंगी ।
2 टिप्पणियां:
bahut hi sundar rachana
shukriya om ji.Aapko accha laga yeh sunke khushi hui.
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