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गुरुवार, 13 अगस्त 2009

जागो एक बार

ओ दुनियावालों! पागल हो तुम सब तो,
रात-दिन रुपयों के पीछे दौड़ते हो।
काम-क्रोध-मोह-मद से तुम भरे हो,
विषय कामनाओं में सदा डूबे रहते हो।
ईर्ष्या  से तुम जल उठे  हो,
दोसरों की तरक्की पर जलते रहते हो।
अपनों को तुम ठुकरा  देते हो,
अपने हित  के वास्ते वैरों से जुड़ जाते ही।
उस भगवन से मुख मोड़ लेते हो,
उसके संतानों को तुम सताते हो।
खून पीसने की मशीन बन जाते हो,
अपने ही भाइयों की ह्त्या करते हो।
याद रखना, की अंजाम इसका तो,
होगा इतना क्रूर, की तुम्हें भी तो,
झुलसना होगा इस अग्निकुंड में एक दिन तो।
हे मानव! अपने कर्मों से तो ढरो ,
अपनी अंतरात्मा की पुकार ज़रा सुनो।
इस बुरी राह से अब तो हट जाओ,
हे दुनियावालों! कम से कम अब तो जागो!

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